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गुरुआ का आर्यन ने लिखा बापू काहे की दीवाली कविता

बहुत माहिर है साहब लहज़े से क़त्ल करते है

बचाकर रखना साहब अपने दिल का मकान

दीवाली

मेरे हिस्से में भी कभी आंखों का जाम भी होगा

दर्पण

मुसाफिर

कोरे कागज़ का टुकड़ा

प्यार का पंछी सदा शोर मचाते रहे

दिन ढलते ही तकिया भिगाना पड़ता है

वो खुद से दूर न कर दे

Chahanewale Bahut Hai

Dhokha

Dil

कुछ नही तो लौटा दो पुराने ही दिन साहब

तेरे पाजेब की छनक से कहीं वो जाग ना जाये

परिंदा है वो गगन का, खुशी छुपाकर रोता है

झोपड़ी का चांद हूँ, आँगन में ही चमकने दो

सुना है तेरे शहर में चाहनेवाले बहुत है

Jinki Ankhen SAHAB Warshon Se Nam Hai

वो पुरानी सी पीपल की ठंडी छांव में

वो भी अधूरा, आज वो भी पूरा कर दिया

ऐसी प्रीत दोनों में बनी रहे खुदा

हैरान हूँ बहुत के कातिल से दोस्ताना है