दिन ढलते ही तकिया भिगाना पड़ता है

तकलीफें तो हर बार कोई दे जाता है साहब
फिर भी गम छुपाकर मुस्कुराना पड़ता है
छुपाने पड़ते है अपने ही अश्क़ों को सरेआम
पर दिन ढलते ही तकिया भिगाना पड़ता है
- कुमार आर्यन

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