दीवाली

पापा बोलो न ?
बिन बच्चों की टोली कैसी
बिना भाव की बोली क्या
बिन रंगों की होली कैसी
बिन पटाखों की दीवाली क्या
हर बार हम पे उठती है उंगलियां
क्यों सुनसान नही होती उनकी गली
मुझे आज बताओ पापा
क्यो रुकती नही बेजुबानों की बलि
रोकना है तो रोके उनको
जो रोज खून बहाते है
पहन मुखोटा इंसानियत का
मासूमां की बलि चढ़ाते है
बंद गर हुआ पटाखा, बच्चे दीवाली कैसे मनाएंगे
घृणी, चरखी, आसमान तारा, फुलझड़ी कैसे जलाएंगे
कब तक रोक लगेगी हम पर, दाग कब तक लगाएंगे
राम के धरती पे पापा, वो हुकूमत कब तक चलाएंगे
- कुमार आर्यन

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