मुसाफिर

*****मुसाफ़िर*****
अपना पराया कोई नही है
दर्द से अपना लड़ता चल
मुसाफ़िर चलता चल......2
सुख दुख है जीवन के पहिये
रंग प्यार का भरता चल
मुसाफ़िर चलता चल.......2
माता पिता ने जन्म दिया है
आंखे अपनी खोलो
भ्रम में फंसकर बंदे तू
कटु वाणी ना बोलो
प्रेम है प्रभु की भाषा
इस दरिया में बहता चल
मुसाफ़िर चलता चल........2
जो आया सो जाएगा
खेल है बहुत पुरानी
दो दिन का ये घर है पगले
दो दिन की ज़िंदगानी
व्यर्थ करता है चिंता मानव
अहंकार से बचता चल
मुसाफ़िर चलता चल........2
दया धर्म ईमान को बंदे
अपनी पहचान बनाओ
करलो ऐसा काम दुनिया में
खुद की नाम कमाओ
कर्म से बढ़कर कोई पूजा नही है
कर्म नेकी का करता चल
मुसाफ़िर चलता चल..........2
मुसाफ़िर चलता चल..........
- कुमार आर्यन


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