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मीरा हो गयी रे बावली

अभी थोड़े वो मुझसे नाराज़ है

जिनमे खुद को देखता रहा

तस्वीर तस्वीर ना लागे

टूटी कश्ती हूँ कोई किनारा चाहिए

कुछ कहो के कोई सौग़ात बने

गांव परिंदा अभी तक गांव नही लौटा

माँ की याद मुझे परदेस में रुलाता रहा

सबके चेहरों पर अब गम दिखाई देते है

मेरा गांव

कौन कहता है मैं रूठूँ तो मनाने को

माँ बताओ न

शायद कोई कमी होगी मुझमें ही यारों

किसी के याद में खुद को,अब नही रुलाऊंगा

कब तलक तिरे सूरत-ए-दीदार होगी

कोई हादसा सा बन गया हूँ

उनकी तस्वीर को सीने से लगाकर बैठा हूँ

दीवाना कर गयी वो.... कवि कुमार आर्यन के कुछ प्यारे से एहसास. Diwana kar ...

माँ बताओ न तुमने खुद को कैसे रोका होगा

तेरे बिन मैं खुद को कैसा कहूँ

मेंहदी काफिर के नाम का वो रचाने लगे

दिल का एक तारा हूँ मैं

कोई मुझे अपना बनायीं थी

बनूँगा कभी मैं भी कुंदन

दिल के एहसासों के तले मेरा मकान है

मेरा दिल, दिल नहीं कब्रिस्तान सा लगता है

Happy teacher's day

बदल जावेगी तौर

तुम वो खुबसूरत गुलाब हो

मुझको क्या मालूम,के सर ने क्या पढ़ाया था

Jamana ho gya sahab

लगता है जहाँपनाह की आवाज़ बदल गई है

दुनिया को जिंदा होने पर प्रमाण देना पड़ता है