मेरा गांव

मेरा गांव
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मेरे गांव के पीपल जैसा, तुझमें वो असर कहाँ ?
बहता जहाँ स्वच्छ हवाएँ, बोल वो शहर कहाँ ?
बैठ कोयलियाँ कदम डाल, रोज मधुर राग सुनाती है....
अब परिन्दों के लिए शहर में, वो सुन्दर घर कहाँ ?
शहर को अपनाकर, क्यों गाँव का रास्ता भूल गये ?
गाँव के जैसा शहरों में, वो चैन का बसर कहाँ ?
जगमगाती मतलबी शायद वो तेरी दुनिया है.......
पर गाँव की फसल के जैसा, वो लहलहाता शहर कहाँ ?
- कुमार आर्यन

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