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दिल को उसका क्यों हर फैसला मंजूर है

झुककर चाहत में अपना ही सर कटा लिया

मुझे बचपन का वो ज़माना दे दे

तुझे जो पढ़ सकूँ वो किताब तो दे दो

देख अश्कों के साथ मुस्कुराना सीख लिया हमने

हसकर करते तो सब हैं बाद में रोना पड़ता है

ग़र इश्क इसे ही कहते है

शिशा है फिर से टूट जायेगा

ज़िन्दगी

चल कहीं और चलें

मौत ही इंसान की......आखरी सफर है

रोने का मज़ा मुझे मालूम है