हँसना सिखलाया पर मुझे रुलाती क्यों है दुनिया
बात बात पर दिल में आग लगाती क्यो है दुनिया
बात बात पर दिल में आग लगाती क्यो है दुनिया
मैं भी पार पाना चाहता हूं उलझनों से
फिर नई उलझनों में उलझाती क्यों है दुनिया
फिर नई उलझनों में उलझाती क्यों है दुनिया
जब भी बोलना चाहता हूं इन्सानियत की बोली
फिर धर्म मजहब की पाठ पढ़ाती क्यों है दुनिया
फिर धर्म मजहब की पाठ पढ़ाती क्यों है दुनिया
जिसने जन्म देकर रहना, चलना सिखाया
उसको चलने का ढंग बतलाती क्यों है दुनिया
उसको चलने का ढंग बतलाती क्यों है दुनिया
Comments