दर्दे दास्तां कहाँ तक सुनाऊँ

हर तरफ से टूट चुका हूँ
दरवाज़े तो छोड़ो
खिड़कियों से भी रुठ चुका हूँ 
ये दर्दे दास्तां कहाँ तक सुनाऊँ
दर्द की हर एक जाम घुट चुका हूं
अब तलाशता हूँ दिल के किसी कोने में खुशी
न जाने इससे कितना पीछे छूट चुका हूँ
-युवा कवि कुमार आर्यन


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