दिल पत्थर बनाकर उछाल रहा हूँ मैं

खुद को खुद से संभाल रहा हूँ मैं
दर्द को जहन से खंगाल रहा हूँ मैं
कब तक गुजारूँगा तन्हाईओं में वक़्त
कुछ यादें दिल से निकाल रहा हूँ मैं
कहीं कोई कांच की माफ़िक तोड़ न दे
दिल पत्थर बनाकर उछाल रहा हूँ मैं
बहुत शातिर हो झूठ बोलने में तुम
इसी हुनर में खुद को ढाल रहा हूँ मैं
-युवा कवि कुमार आर्यन

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