कोई मना रहा जश्न जीत का
किसी को भोजन जुटाना भारी है
किसी को है सत्ते की भूख
किसी को भूखा रहना लाचारी है
किससे कहे, कौन सुने एक गरीब की पुकार
हर चीज़ की तलब उसे, नेता वो नही भिखारी है
धर्म, मजहब की आड़ लेकर खंड करता जो सभ्यता
सच मानो देश के साथ कर रहा गद्दारी है
लिख रहा जो किस एक पर नित कविता और ग़जलें
हकीकत में वो कवि नही, वो तो एक दरबारी है
सच को सच, झूठ को झूठ कहने की भी तैयारी है
लेखनी से सच लिखने का, अभी जंग मेरा जारी है
- कुमार आर्यन
किसी को भोजन जुटाना भारी है
किसी को है सत्ते की भूख
किसी को भूखा रहना लाचारी है
किससे कहे, कौन सुने एक गरीब की पुकार
हर चीज़ की तलब उसे, नेता वो नही भिखारी है
धर्म, मजहब की आड़ लेकर खंड करता जो सभ्यता
सच मानो देश के साथ कर रहा गद्दारी है
लिख रहा जो किस एक पर नित कविता और ग़जलें
हकीकत में वो कवि नही, वो तो एक दरबारी है
सच को सच, झूठ को झूठ कहने की भी तैयारी है
लेखनी से सच लिखने का, अभी जंग मेरा जारी है
- कुमार आर्यन
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