मैं बेटी हूँ

माँ की दुलारी, पापा की प्यारी, तितली बन मंडराती हूँ
बाबुल की बगिया की फूल बन खुद पे मैं इतराती हूँ
हां मैं बेटी हूँ, बेटी होने पर अपनी तकदीर इठलाती हूँ
भइया के संग लड़ना झगड़ना एक पल में छूट गया
बीते हुए उन लम्हों को यादकर मंद मंद मुस्काती हूँ
हां मैं बेटी हूँ, बेटी होने पर अपनी तकदीर इठलाती हूँ
बीती जहां बचपन की घड़ियां और जवानी जब आई
छोड़ बाबुल का घर याद में भर नैना आंसू बहाती हूँ
हां मैं बेटी हूँ, बेटी होने पर अपनी तकदीर इठलाती हूँ
जब तक जीवन है लाज रखूंगी बाबुल तेरे आँगन की
तेरे हीं आँगन जैसे इस आँगन को भी महकाती हूँ
हां मैं बेटी हूँ, बेटी होने पर अपनी तकदीर इठलाती हूँ
माँ जब तक मैं रही संग तेरे आंच न मुझपर कोई आयी
अब तो दर्द है मुझमें फिर भी सबसे छुपाती हूँ
हां मैं बेटी हूँ, बेटी होने पर अपनी तकदीर इठलाती हूँ
-शायर कुमार आर्यन


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