पुरे शहर को अपना महबुब तुम बना लो

डुबी हुई कस्ती को जरा तुम बचा लो...
मेरे प्यार को जहाँ तक चाहो आजमा लो...
ग़र कमी हो मेरी मुहब्बत में पागल...
फिर चाहे पुरे शहर को अपना महबुब तुम बना लो...
कुमार आर्यन

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