कौन किसी के लिए रोया है

अपने दर्द को हंसकर लफ़्ज़ों में पिरोया है....
तुझे क्या मालूम हमने क्या-क्या खोया है..
हम ख़ुशी बांटते रह गये नादाँ बनकर...
और मुझे कुछ लोगों ने ग़मों में डुबोया है....
दिन ढल गई यादों में, रात तड़प-तड़प के रोया है...
तड़पाकर देखो वो मुझे, कितने चैन से सोया है....
प्यार, मुहब्बत, इश्क, वफ़ा सब मतलब से ही होते है....
बिन मतलब के इस ज़माने में, कौन किसी के लिए रोया है...
कुमार आर्यन

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