कभी गरीबों की मजाक न उड़ाया करो

---------------मेरी ग़ज़ल---------------
मुझे रहने दो चैन से मेरी झोपड़ी में....
दिखाकर महलों की रौशनी न जलाया करो....
कहीं चुभ न जाये पांव में निगोड़ी कांटे तुम्हें....
यूँ पैदल न मेरे घर को आया करो....
बिक रही है बाज़ारों में फुल जैसी मुहब्बत...
हो रही है बर्बाद कितनी कलियाँ न बताया करो....
उम्र बित जाती है महज़ एक दोस्ती निभाने में....
ना दौलत का घमंड मुझे दिखाया करो....
फंसे रहने दो मुझे दुनियादारी में सुनो...
मुहब्बत क्या मुझे न बताया करो........
मुबारक हो तुझे शान-ए-शोहरत सभी...
कभी गरीबों की मजाक न उड़ाया करो...
दर-दर की ठोकरें खाकर जो हँसता रहा.....
मुझ ''शायर'' को तुम न समझाया करो.......
कुमार आर्यन..

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