बोलो ऐ मन मीत मेरे, लिखूँ कौन-सा गीत

बोलो ऐ मन मीत मेरे, लिखूँ कौन-सा गीत
===========================
लिखूँ भी तो क्या लिखूँ, बोलो ऐ मन मीत...
दर्द-ए-दास्ताँ लिखूँ या लिखूँ प्रेम रस गीत...
एक तो मौसम बेईमान है दूजे टुटा इंसान...
तीजे दिल में है मेरा, बहकता हुआ संगीत...
बोलो ऐ मन मीत मेरे, लिखूँ कौन-सा गीत...
कहीं नफरत की धुप है, कहीं गम का अँधेरा...
न जाने कब होगा, प्रेम भरा सवेरा......
कब तलक इन्सान यहाँ, नफ़रत की निगाहों से देखेगा.....
कब तलक दूसरों के, खामियों को निरेखेगा....
देख-देखकर रीत ये, भूल गया हूँ तेरा प्रीत.....
बोलो ऐ मन मीत मेरे, लिखूँ कौन-सा गीत...
जिसका जितना नाम है, वो उतना बदनाम है...
बाद मतलब निकलने के, किसी से न उसका काम है...
जिसके पास जितनी दौलत, उसका उतना नाम है...
जिसके पास नही कुछ भी, वो अक्सर बदनाम है....
के फिर सोचता हूँ इस युद्ध से, कैसे होगी जीत...
बोलो ऐ मन मीत मेरे, लिखूँ कौन-सा गीत...
लिखूँ भी तो क्या लिखूँ, बोलो ऐ मन मीत...
दर्द-ए-दास्ताँ लिखूँ या लिखूँ प्रेम रस गीत...
- कुमार आर्यन

Comments